
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना और पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमां ख़ान कमाल को in-absentia मौत की सज़ा सुनाए जाने के बाद अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन एक साथ जाग गए हैं। और यह सब ऐसे वक्त में हो रहा है जब हसीना खुद भारत में मौजूद हैं और ढाका सरकार कोर्ट के फैसले के बाद India से उनका extradition मांग रही है।
Trial तो हुआ, पर accused मौजूद नहीं थे—Human Rights bodies का तंज
Human Rights Watch ने कहा कि दोनों को बिना मौजूदगी के सज़ा देना और अपनी पसंद का वकील न मिल पाना, केस को पूरी तरह संदिग्ध बनाता है। अर्थात—न्याय तो हुआ, पर दूर से हुआ और बहुत जल्दी हुआ।
Amnesty International ने भी तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि इतनी तेज़ स्पीड में मुकदमा चलाना फॉर्मूला-1 रेस से भी ज़्यादा खतरनाक है। साथ ही मौत की सज़ा को “क्रूर और अमानवीय” बताते हुए इसे मानवाधिकारों के खिलाफ बताया।
UN भी कूद पड़ा—कह दिया, Death Penalty बंद करो
संयुक्त राष्ट्र ने सीधे शब्दों में कहा कि वे मौत की सज़ा का विरोध करते हैं और देशों से इसे खत्म करने की लगातार मांग करते रहे हैं। हालांकि, UN की अपनी जांच रिपोर्ट भी कम विस्फोटक नहीं है।

UN रिपोर्ट का बड़ा दावा—1400 लोग मारे गए थे हसीना सरकार के विरोध में
UN की fact-finding के मुताबिक पिछले साल जुलाई–अगस्त के विरोध प्रदर्शनों में 1,400 लोगों की मौत हुई, जिनमें ज्यादातर सरकारी कार्रवाई में मारे गए प्रदर्शनकारियों के नाम शामिल हैं। यानी एक तरफ ढाका सरकार कहती है “न्याय,” दूसरी तरफ दुनिया भर के Human Rights Groups कहते हैं “This is not justice, this is panic mode justice!”
India पर नज़र—ढाका चाहता है Extradition
हसीना पिछले साल 5 अगस्त से भारत में हैं और अब बांग्लादेश उन्हें वापस लाना चाहता है। भारत पर क्या दबाव बनेगा? कूटनीति में अगला डायलॉग क्या होगा? अभी यही सबसे बड़ा सवाल है।
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